वांछित मन्त्र चुनें

यु॒वं नो॒ येषु॑ वरुण क्ष॒त्रं बृ॒हच्च॑ बिभृ॒थः। उ॒रु णो॒ वाज॑सातये कृ॒तं रा॒ये स्व॒स्तये॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvaṁ no yeṣu varuṇa kṣatram bṛhac ca bibhṛthaḥ | uru ṇo vājasātaye kṛtaṁ rāye svastaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒वम्। नः॒। येषु॑। व॒रु॒ण॒। क्ष॒त्रम्। बृ॒हत्। च॒। बि॒भृथः। उ॒रु। नः॒। वाज॑ऽसातये। कृ॒तम्। रा॒ये। स्व॒स्तये॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:64» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:2» मन्त्र:6 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विरोध के त्याग और धनप्राप्ति विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वरुण) उत्तम (च) और हे मित्र ! (युवम्) आप दोनों (येषु) जिनमें (नः) हम लोगों के लिये (बृहत्) बड़े और (उरु) बहुत (क्षत्रम्) धन को (बिभृथः) धारण करते हैं और (नः) हम लोगों को (वाजसातये) सङ्ग्राम के लिये (राये) धन के और (स्वस्तये) सुख के लिये (कृतम्) किया उनमें वैसे ही हूजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्यों को चाहिये कि विरोध का त्याग कर और उत्तम प्रकार मिलने से उद्यम करके विजय और धन आदि को प्राप्त करें ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विरोधत्यागधनप्राप्तिविषयमाह ॥

अन्वय:

हे वरुण च ! युवं येषु नो बृहदुरु क्षत्रं बिभृथो नो वाजसातये राये स्वस्तये कृतं तेषु तथैव भवतम् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (युवम्) युवाम् (नः) अस्मभ्यम् (येषु) (वरुण) उत्तम (क्षत्रम्) धनम् (बृहत्) महत् (च) मित्र (बिभृथः) (उरु) बहु (नः) अस्मान् (वाजसातये) सङ्ग्रामाय (कृतम्) (राये) धनाय (स्वस्तये) सुखाय ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । मनुष्यैर्विरोधं विहाय सम्प्रयोगेणोद्यमं कृत्वा विजयधनादिकं प्रापणीयम् ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी विरोध सोडावा व उत्तम प्रकारे उद्योग करून विजय व धन इत्यादी प्राप्त करावे. ॥ ६ ॥